Thursday 22 March 2012

‘आत्महत्या के बारे में सोच कर’

सोचा है कभी ?
मरने के बारे में,
खुद मौत चुनने वालों के पास
जरूर रहा होगा कोई कारण
या फिर
न रहा होगा जीने का कोई कारण,
कहते हैं आत्महत्या
बुजदिलों का काम है
पर क्या इतनी भी हिम्मत होती है किसी के पास ?
अब कई बार सोच चुका हूँ इस बारे में
मगर मुझमे इतनी भी हिम्मत नहीं.

सोचता हूँ
अब तक जो कुछ भी किया
जिनके लिए भी किया
जिस कारण से भी किया
क्या हो पाया उन चीजों का?
कभी-कभी सबकुछ निरर्थक जान पड़ता है.

अक्सर होता हूँ अकेला
छोड़ भी दिया जाता हूँ अकेला,
उनसे तो और
होना चाहता हूँ जिनके साथ,
सोचता हूँ
दस, बीस या फिर पचास साल बाद भी
यूँ ही रहूँ अकेला
तब सोचूंगा क्यों नहीं किया
कोई कोशिश कोई काम
जो निरर्थक न लगे जीवन,
लेकिन हर बार हार जाता हूँ.

फिर भी
इतनी भी हिम्मत नहीं मुझमें,
या अब भी बची हुई है
कहीं पे कोई उम्मीद,
आखिर उन्होंने क्यों मारा होगा खुद को
जब खत्म हो गए होंगे सारे रास्ते...

-सरोज 

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