Wednesday 19 September 2012

आपके बाद....



(अपने मित्र संदीप भैया के अखबार छोड़ने के बाद)

क्या फर्क पड़ता है
हमारे होने न होने का.

मैं घूर रहा हूं हिंदुस्तान की इस बिल्डिंग को
या फिर वो मुझे घूरने लगा है,
फ्लाईओवर पर गुजरते हुए
मैं देखता हूं इसे
इतराता हुआ.

मालूम नहीं किस-किस को पड़ा है फर्क
आपके होने न होने का,
इस बिल्डिंग को
इस अखबार को
आपके बॉस को
आपके सहकर्मी को
या फिर आपके उस दोस्त को
जो आपको गले लगा कर विदा कर रहा है
मिस करने का दावा करते हुए,
या फिर मुझे,
मेरे दोस्त पता नहीं किस बात पर हंस रहे हैं
क्या उन्हें भी पड़ा है कोई फर्क?
मैं महसूसना चाह रहा हूं फर्क.
फ्लाईओवर पर ही बढ़ने लगता हूं
दूर-दूर तक चमक रहे हैं
बाजार, शोरुम, होर्डिंग्स
लोगों, गाड़ियों की आवाजाही जारी है
रोजाना की तरह,
नीचे पटना जंक्शन पर खड़ी हैं ट्रेनें
पता नहीं कहां-कहां के लिए
आना-जाना जारी है,
दूर चमक रहा है दैनिक जागरण का एक बोर्ड
और कई चीजों की होर्डिंग्स
मैं मुंह फेर लेता हूं.

आगे बढ़ते ही
एक बुजुर्ग फुटपाथ पर नशे में
मोबाईल से बुला रहा है अपने बेटे को
वह इतने नशे में है कि चल नहीं सकता,
कहां जाना है
पूछते ही वह भड़क उठा है-
आप अपना काम करिए
सामने गुजरता आदमी मुझपर हंसने लगा है
मैं जल्दी से गुजर जाना चाहता हूं,
सामने से चली आ रही हैं दो महिलाएं
एक-दूसरे का हाथ थामे हुए.

मैं उतरने लगा हूं
फ्लाईओवर के दूसरी ओर
दस मिनट बाद
एक किशोर साईकिल पर बैठा लिए जा रहा है
उसी आदमी को जो नशे में है.

सामने टाटा डोकोमो की बड़ी-सी होर्डिंग टंगी है-
दो बातें नहीं...करो दोगुनी बातें
कोई मुस्कुरा रहा है
हर दोस्त जरुरी होता है ?
मैं तलाशने लगा हूं कोई चेहरा
और आगे की सड़क पर अब गहरा अंधेरा है
कुछ कांच के टुकड़े बिखरे पड़े हैं.

आगे हिंदुस्तान अखबार का एक होर्डिंग टंगा है-
बड़ी-सी बिल्डिंग तैयार करते हुए
एक इंजीनियर मुस्कुरा रहा है
लिखा है- कुछ यूं आसमां चूमेगा बिहार
बिहार मांगे इंसाफ.

एक स्कूटी के विज्ञापन में लिखा है- लड़कों वाली बात.
एक लड़की मुस्कुरा रही है.

थोड़ी ही दूर आगे बढ़ते ही
पकौड़ियां छानती एक बूढ़ी औरत
पोंछ रही है पसीना
दो मजदूर खड़े अपनी जेब टटोल रहे हैं.

मैं अब एक दोस्त के कमरे में
चबा रहा हूं घी में लिपटी रोटियां,
किस चीज का फर्क पड़ता है हमें
किन्हें फर्क पड़ता है हमारे होने न होने का...

-सरोज

Monday 3 September 2012

शहर के दोस्त के नाम पत्र

-अनुज लुगुन

हमारे जंगल में लोहे के फूल खिले हैं
बॉक्साइट के गुलदस्ते सजे हैं
अभ्रक और कोयला तो
थोक और खुदरा दोनों भावों से
मण्डियों में रोज सजाए जाते हैं
यहां बड़े-बड़े बांध भी
फूल की तरह खिलते हैं
इन्हें बेचने के लिए
सैनिकों के स्कूल खुले हैं,
शहर के मेरे दोस्त
ये बेमौसम के फूल हैं
इनसे मेरी प्रियतमा नहीं बना सकती
अपने जूड़े के गजरे
मेरी माँ नहीं बना सकती
मेरे लिए सुकटी या दाल
हमारे यहां इससे कोई त्योहार नहीं मनाया जाता,
यहां खुले स्कूल बारह खड़ी की जगह
बारह तरीकों के गुरिल्ला युद्ध सिखाते हैं
बाजार भी बहुत बड़ा हो गया है
मगर कोई अपना सगा दिखाई नहीं देता
यहां से सबका रुख
शहर की ओर कर दिया गया है
कल एक पहाड़ को ट्रक पर जाते हुए देखा
उससे पहले नदी गई
अब खबर फैल रही है कि
मेरा गांव भी यहां से जाने वाला है,
शहर में मेरे लोग तुमसे मिलें
तो उनका ख्याल जरुर रखना
यहां से जाते हुए
उनकी आंखों में मैंने नमी देखी थी
और हां,
उन्हें शहर का रीति-रिवाज भी तो नहीं आता,
मेरे दोस्त
उनसे यहीं मिलने की शपथ लेते हुए
अब मैं तुमसे विदा लेता हूं।

मैं आदिवासी हूं

-अनुज लुगुन

मैं आदिवासी हूं
दलित हूं
मजदूर हूं
मैं एक किसान हूं
राज्य की परिधि के अंदर
मेरा घर है
मैं राज्य का वैधानिक नागरिक हूं
इसके बावजूद
राज्य ने मुझे कारागार में डाला
मेरी आवाज बंद की
हक के लिए उठे
मेरे हाथ को काट डाला,
अब राज्य चाहता है
मैं उसका जयगान करुं
मैं एक देशभक्त नागरिक हूं
देशभक्त नागरिक होने के नाते
मेरा धर्म
राज्य का जयगान होना चाहिए
या, उससे विद्रोह।

आजाद लोग

-अनुज लुगुन

                                          
मुकाबला जब आजाद लोगों से हो
तो हार-जीत के सवाल बेतुके होते हैं
हारे हुए आजाद आदमी के जज्बात
जीते हुए राजा के जज्बात से
ज्यादा सुंदर और मजबूत होते हैं,
आजाद लोग अपने मरने पर विचार नहीं करते
वे अपने-
देवताओं
पूर्वजों
बच्चों
बूढ़ों और औरतों के सम्मान पर बहस करते हैं
वे किसी हथियारबंद राजा से नहीं डरते
वे एक पेड़ के गिरने से डरते हैं
नदी के सूखने से डरते हैं
आँधी से गिरे
किसी पक्षी के घोंसले को देख वे चिंतित होते हैं,
आजाद लोग अपनी मौत से ज्यादा
दूसरों के जीवन पर बहस करते हैं
आजाद लोग फिर अपने बहसों पर हैं
वे धान की बालियों पर
हवा के लिए बहस कर रहे हैं
वे लोकतंत्र के राजपथ पर
जंगलों के लिए बहस कर रहे हैं।
आज फिर
हारे हुए आजाद आदमी के जज्बात
जीते हुए राजा के जज्बात से ज्यादा सुंदर और मजबूत हैं।