Thursday 22 March 2012

‘डर’ (लघुकथा)

एक विक्षिप्त व्यक्ति के सड़क के बीचोंबीच आ जाने के कारण चौराहे पे जाम लगने लगा था. दोनों ओर से कारों, दुपहियों की चाल अनचाहे धीमे हो रही थी.
“साले! यहीं लोग ट्रैफिक जाम कर देते हैं” एक कार वाला बडबडाया.
“ठोंक के निकल लो, साला खुद हट जायेगा” दूसरे ने सुझाया.
इतने में एक कार तेजी से आई और उसे धक्का मार चलते बनी.
दूसरे दिन, वहीँ चौराहा, वैसी ही गाड़ियाँ. सड़क पर जबरदस्त जाम लगा हुआ था. कारें चींटियों की तरह रेंग रही थीं. “ड्राइवर! जरा बचाकर चलना, उसे धक्का न लगे वरना लोग बवाल कर देंगे” सब अपने-अपने ड्राइवरों को हिदायत दे रहे थे. इतना ही नहीं बल्कि चार-पाँच लोग गाड़ियों से उतर कर उसे बीच सड़क से किनारे लाने का प्रयास कर रहे थे. दरसल सड़क के बीचोंबीच एक गाय आ गई थी.


-सरोज 

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